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ज़िन्दगी गुलज़ार है

९ सितंबर – ज़ारून

आज का दिन ख़राबतरीन दिनों में से एक था. कॉलेज में एम.ए. क्लास का पहला दिन था और पहले दिन ही…

सुबह मैं बहुत अच्छे मूड में कॉलेज गया था, क्योंकि मौसम बहुत अच्छा था. पहली और आज होने वाली इंट्रोडक्टरी क्लास अबरार सर की थी और उनकी क्लास मैं बी.ए. में मिस नहीं कर सका था, तो अब कैसे करता? अब उनसे ताल्लुक अच्छे करना और रखना मेरी मजबूरी है. ज़ाहिर है, वो पापा के अच्छे बल्कि मुझे तो लगता है कि बेहतरीन दोस्त हैं. पापा पर उनका बहुत असर है. बाज़ दफ़ा मेरी जो बात पापा वैसे नहीं मानते, वो सिर्फ़ उनके कहने पर मान लेते हैं.

वैसे तो कभी-कभी मुझे अबरार सर बहुत सुपर नेचुरल किस्म की चीज़ लगते हैं. उन्हें मेरी हरा एक्टिविटी का पता होता है. बीए में जब उनकी क्लास में देर से आता था, तो वो मेरे न आने की असल वजह ख़ुद ही तैयार करते थे. उन्हें अच्छी तरह पता होता था कि मैंने किस दिन कितनी क्लासेज छोड़ी, आजकल किन लड़कियों के साथ फ़िर रहा हूँ, कौन से प्रोफेसर मेरे बारे में अच्छे खयालात रखते हैं और कौन मुझसे तंग हैं. फ़िर भी उनका एहसान ही है कि पापा को किसी बात से मुता’आला नहीं करते हैं. बहुत मेहरबान हैं मुझ पर.

जब मैं क्लास में गया था, तो वहाँ ज्यादा लोग नहीं थे. इस्लाम और फ़ारूक़ मुझे बाहर ही मिल गए थे. उनके साथ जब मैं अगली रो की तरफ़ गया, तो मैंने देखा कि दूसरी रो में चार लड़कियाँ बैठी हुई हैं. उनमें से दो को तो मैं फ़ौरन पहचान गया. एक असमारा इब्राहीम थी और दूसरी आरज़ू मसूद. दोनों कजिन्स हैं और सोशल गैदरिंग में अक्सर उनसे मुलाक़ात होती रहती है और असमारा को मैं ख़ासा पसंद करता हूँ, क्योंकि वो ख़ूबसूरत है, फ्रैंक है और ऐसी ही लड़कियाँ मुझे अपील करती हैं.

वो दोनों मुझे देखते ही अपनी रो से बाहर आ गई. जब मैं उनसे रस्मी हाय-हलो में मशरूफ़ था, तो दूसरी रो में बैठी हुई दो लड़कियों में से एक की ख़ूबसूरत आँखें देखी थी और उसके साथ वो बैठी थी, जिसने वाकई क्लास में मुझे नाको चने चबवा दिए थे.

क्लास शुरू होने से पहले जब मैंने एक सरसरी निगाह डाली थी, तो मुझे उसमें ऐसी कोई ख़ूबी नज़र नहीं आई थी, जो मुझे दोबारा उसे देखने पर मजबूर करती. लाइट पिंक कलर के लिबास में ब्लूस वह ख़ुद को एक बड़ी चादर में छुपाये हुए थी और वो अपने हाथ में पकड़े हुए बॉल पेन से मसलसल अपनी फाइल को स्क्रैच कर रही थी. मैं क्योंकि असमारा और आरज़ू के साथ बातों के दौरान मौका-बा-मौका फ़रज़ाना को भी देख रहा था और क्योंकि वो फ़रज़ाना के साथ बैठी थी. इसलिए उसकी ये हरक़त मेरी नज़र में आ गई.

अबरार सर क्लास में आने के बाद मुझे देख कर मुस्कुराये थे. दो दिन पहले उन्होंने मुझसे कहा था कि अब लेट आने पर कुछ अच्छे और सॉलिड बहाने बना कर पेश करूं क्योंकि वो पुराने घिसे-पिटे बहाने सुन-सुन कर तंग आ गए हैं और मैंने उन्हें तसल्ली दी थी कि अब मैं पुराने बहानों से बोर नहीं करूंगा. आखिर, मैं एक तख्लिकी बंदा हूँ, लेकिन पहले ही दिन सुबह के वक़्त क्लास में मौज़ूद पाकर वो शायद ये समझ थे कि मैं देर से आने की पुरानी हरक़तें छोड़ दी हैं. इसलिए वो मुझे देख कर बड़ी ख़ुशदिली से मुस्कुराये थे.

मैं जानता था कि अबरार सर सबसे पहले लड़कियों से ही इंट्रोडक्शन लेंगे और मैं फ़रज़ाना के बारे में जानने के लिए काफ़ी मुश्ताक़ हो रहा था, क्योंकि उसकी आँखों ने मुझे बहुत मुतास्सिर किया था. इसलिए बड़े सब्र के साथ मैं उनके इंट्रोडक्शन का इंतज़ार कर रहा था और उसके इंट्रो के बाद मुझे किसी और के इंट्रो में दिलचस्पी नहीं रही, लेकिन जब अबरार सर ने उस लड़की से कहा कि वो बहुत छोटी सी लग रही है, तो उसके जवाब ने मुझे मुस्कुराने और पीछे मुड़ने पर मजबूर कर दिया और वाकई काफ़ी कम उम्र लगती थी. मैंने उसकी बौखलाहट देख कर उस पर बेईख्तियार रिमार्क्स पास किये. ये करके मुझे काफ़ी ख़ुशी हुई थी हमेशा की तरह.

फ़िर जब अबरार सर ने मुझे अपना इंट्रोडक्शन करवाने के लिए कहा, तो मैं अपनी जगह से उठ कर डायस के पास चला गया. अबरार सर ख़ामोशी के साथ मुस्कुराते हुए देखते रहे. शायद वो जानना चाहते थे कि मैं क्या चाहता हूँ.

मेरा नाम ज़ारून जुनैद है. मेरी स्कूलिंग अप्सियन में हुई है और वहाँ थ्रू-आउट मैं फर्स्ट पोजीशन लेता रहा हूँ. पिछले साल मैंने स्पोर्ट्स में कॉलेज कलर हासिल किया और बीए में टॉप किया और ग्रेजुएशन के दौरान मैं कॉलेज की तकरीबन तमान सरगर्मियों में हिस्सा लेता रहा हूँ. आप में से बहुत से ऐसे होंगे, जो इस कॉलेज में तो क्या शायद शहर में भी नए होंगे और मैं यहाँ का पुराना स्टूडेंट हूँ. सो, आप में से किसी को मेरी मदद की ज़रूरत पड़े, तो मुझे मदद कर के बहुत ख़ुशी होगी.. शुक्रिया बहुत बहुत.”

मैंने अपना बड़ा तफ्सीली तारुफ़ कराया, फ़िर अपनी चेयर पर आकर बैठ गया. अबरार सर की मुस्कराहट ज़ाहिर कर रही थी कि वो जान चुके हैं कि आज मैं बहुत मूड में था. इसलिए जब मैं अपनी सीट पर आकर बैठा, तो उन्होंने मेरी तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “इस सारी तक़रीर को आप क्या समझते हैं?”

सर नेक्स्ट यूनिवर्सिटी इलेक्शन में खड़ा होने के लिए कैन्वसिंग की एक कोशिश.”

जवाब वहाँ से आया था, जहाँ से ऐसे किसी जुमले की मैं तवक्को भी नहीं कर सकता था. वो कशफ़ मुर्तज़ा थी. सिर्फ़ एक लम्हे के लिए मैं साकित हुआ था, फ़िर बड़े इत्मिनान से पीछे मुड़ते हुए सीधा उसकी आँखों में झांक कर मैंने पूछा, “तो क्या मैं ये तवक्को रखूं कि आप मुझे वोट देंगी?”

हर्गिज़ नहीं, आप मुझसे वोट की तवक्को ना रखें.”

उसके फौरी जवाब ने मुझे हैरान कर दिया था.

तो क्या मैं ये तवक्को रखूं कि अगर मैं इलेक्शन में एक वोट से हार जाऊंगा, तो वो वोट आपका ही होगा?”

आपको ये ख़ुशफ़हमी क्यों है कि आप सिर्फ़ एक वोट से हारेंगे? आपको गैरंटी दे सकती हूँ कि आप एक लंबी लीड से हारेंगे.”

क्यों? आप ये गैरंटी कैसे दे सकती हैं कि मैं लंबी लीड से हारूंगा? आप क्या जाली वोट कास्ट करने की माहिर हैं?”

जी नहीं, ये काम आपको ही मुबारक हो. महारत हासिल करने के लिए और बहुत से शोबे हैं. जो लोग ज्यादा ख़ुशफ़हम होते हैं, वो हारते हमेशा ही बुरी तरह हैं.”

हो सकता है आपका अंदाज़ा इस बार ग़लत साबित हो.”

चलिए देख लेंगे, वैसे दुनिया भी उम्मीद पर क़ायम है.”

उसका लहज़ा बहुत दो-टूक था. मैं ना चाहते हुए भी सीधा हो गया. अबरार सर मुझे ही देख रहे थे और उनकी मुस्कराहट बहुत गहरी थी. वो लड़की मुझे पहली नज़र में बेवकूफ़ लगी थी. लेकिन, अब मैं उसके बारे में अपने ख़याल बदल चुका हूँ. वो इतनी बेवकूफ़ नहीं है, जितनी मुझे लगी थी. आइंदा उससे बात करते हुए मैं काफ़ी मोहतात रहूंगा, ताकि आज की तरह दोबारा मुझे शर्मिंदगी ना उठानी पड़े.    


                                                          कशफ़  

आज कॉलेज में जाते हुए मुझे पूरा एक हफ़्ता हो गया है. इस एक हफ़्ते के दौरान क्लासेस इतनी बाक़ायदगी से नहीं हुई और मैं फ़िक्रमंद हूँ कि अगर इसी रफ़्तार से क्लासेस होंगी, तो कोर्स कैसे पूरा होगा.

खैर अभी तो एक हफ़्ता ही हुआ है. पहले दिन ज़ारून ज़ुनैद के साथ मेरी बहस हुई थी और उसके बाद उसका रवैया काफ़ी अजीब सा है. उसका ग्रुप डिपार्टमेंट के सबसे ज़रीन-तरीन लड़कों का ग्रुप है और पूरे कॉलेज में उनकी धाक जमी हुई है. वैसे भी जब किसी के पास ज़ेहनियत, ख़ूबसूरती, और दौलत ख़ूब हो, तो किसी भी जगह धाक जमाना बहुत आसान हो जाता है.

ऐसे ही लोगों को देख कर मुझे वो बात बहुत शिद्दत से याद आती है कि ख़ुदा किसी भी आदमी को सब कुछ नहीं देता, कोई ना कोई कमी ज़रूर रखता है. मगर आखिर इस ग्रुप के लोगों को क्या कमी है? क्या इनके पास रुपया नहीं है? क्या इनके पास ज़हनियत नहीं है या अच्छा फैमिली बैकग्राउंड नहीं है? आखिर कौन सी चीज़ है, जो इनके पास नहीं है? मुझे बिल्कुल भी इस बात पर यकीन नहीं है कि ख़ुदा किसी भी शख्स को सब कुछ नहीं देता है.

बाज़ लोगों को तो अल्लाह ने सब कुछ दे दिया है और बाज़ लोगों को कुछ भी नहीं. जैसे मेरे जैसे लोग, जिसे ना तो अच्छा खाने को मिलता है, न पहनने को. जो बीमार हो जाये, तो गवर्मेंट हॉस्पिटल ढूंढते फिरते हैं. इज़्ज़त की बुनियाद तक़वा पर कहाँ होती है? कौन इज़्ज़त करता है आपके तक़वा की?

इज़्ज़त तो रुपये से होती है और तक़वा वैसे भी गरीबों की मिरास बन कर रह गई है. गरीब की इबादत तो किसी खाते में नहीं आई. हाँ अमीर इबादत करे, तो पूरे ज़माने में इसकी धूम मच जाती है और दुआयें भी तो अमीरों की ही कुबूल होती है, जो ख़ुदा की राह में हजारों बल्कि लाखों ख़र्च करते हैं. भला मुझ जैसे लोग जो रुपया-दो-रुपया खैरात करते हैं, उनकी दुआएं कैसे क़ुबूल हो सकती हैं! फ़िर मेरे जैसे लोग ये कह कर ख़ुद को तसल्ली दे लेते हैं कि ज़रूर हम में ही कोई ख़राबी होगी, जो दुआ क़ुबूल नहीं होती.

जब तक छोटी थी, ख़ुद को बहला लिया करती थी. लेकिन जब से यहाँ आई हूँ और लोगों के पास इतना रुपया और ऐश देखा, तो अपनी ज़ात और भी हक़ीर (छोटी) लगने लगी है. कुछ तो ऐसा मेरे पास भी होता, जो दूसरों से मुवाज़ ना करती और ख़ुद को बेहतर पाती. यहाँ आकर मेरे कॉमप्लीकेशन्स और भी ज्यादा हो गए हैं, लेकिन मैं अपनी तालीम छोड़ कर यहाँ से जा भी नहीं सकती.

फ़रज़ाना सो चुकी है और मैं इस वक़्त किसी से बातें करना चाहती हूँ. लेकिन इससे नहीं कर सकती क्योंकि वो मेरी सिर्फ़ रूममेट है, दोस्त नहीं. वो जिस क्लास से ताल्लुक रखती है, वो क्लास सिर्फ़ स्टेटस देख कर दोस्त बनाती है और वो वैसे भी ज़ारून ज़ुनैद के ग्रुप में होती है. इसके रवैये ने मुझे तकलीफ़ नहीं पहुँचाई. हर शख्स को हक़ होता है कि वो अपनी मर्ज़ी के दोस्त बनाए. लेकिन, क्या वाकई मुझे तकलीफ़ नहीं होती?

हाँ, मुझे तकलीफ़ पहुँचती है. क्या इस बात से आपको तकलीफ़ नहीं होती कि कोई आपको सिर्फ़ इसलिए नज़र-अंदाज़ करता है, क्योंकि आपके पास रुपया नहीं है, आपका लिबास महंगा नहीं है, आप किसी ऊँची फैमिली से ताल्लुक नहीं रखते.

हर गुज़रता दिन इस बात पर मेरा इकाद पुख्ता करता जा रहा है कि दुनिया में सबसे बड़ी ताक़त रुपया है और यही रुपया मुझे हासिल करना है, क्योंकि सिर्फ़ यही वो चीज़ है, जो इस मशरह (समाज) में मेरे खानदान की इज़्ज़त दिलवा सकती है. क्या कभी मेरे पास इतना रुपया होगा कि मैं अपनी सारी ख्वाहिशात को पूरा कर सकूं? ‘ख्वाब सिर्फ़ ख्वाब है’ किसी ने कहा है ना. ख्वाब तो ख्वाब हैं, फक्त ख्वाब ही से क्या होगा? हमारे बीच को हाएल है वो हकीक़त है.     

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2 Comments

Radhika

09-Mar-2023 04:35 PM

Nice

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Alka jain

09-Mar-2023 04:19 PM

बेहतरीन

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